AM-सायंकालीन समाधि प्रक्रिया

AM-सायंकालीन समाधि प्रक्रिया

सायंकाल को मास्टर प्रेयर, इम्प्रूवमेंट प्रेयर और कन्ट्रोल प्रेयर करने के बाद समाधि में जाने की निम्नलिखित प्रक्रिया है।

नोट: प्राणायाम करते हुए ‘सद्गुरु ॐ’ का उच्चारण करने के बाद ‘सद्गुरु’ नाम के ग्यारह प्राणायाम करने है।

समाधि

मेरे सद्गुरु परमात्मा

सचसँग

सद्गुरु ॐ

पहले एक बार मन ही मन ‘सद्गुरु’ बोलना है फिर सामान्य श्वास लेना है। फिर एक पल (सेकण्ड) रुकना है फिर एक बार मन ही मन ‘ॐ’ बोलना है फिर सामान्य श्वास छोड़ना है। इस प्रक्रिया को एक बार दोहराना है। इस प्रक्रिया के दौरान ध्यान भ्रुकृटि में रखना है। इस प्रक्रिया के दौरान ध्यान भ्रुकृटि में सतरंगी बिंदु पर केन्द्रित करना है। इस प्रक्रिया को पूरा करने में मुश्किल से तीन पल (सेकण्ड) का समय लगेगा।

सद्गुरु ॐ

पहले एक बार मन ही मन ‘सद्गुरु’ बोलना है फिर सामान्य श्वास लेना है। फिर एक पल (सेकण्ड) रुकना है फिर एक बार मन ही मन ‘सद्गुरु’ बोलना है फिर सामान्य श्वास छोड़ना है। इस प्रक्रिया को ग्यारह बार दोहराना है। इस प्रक्रिया के दौरान ध्यान भ्रुकृटि में रखना है। इस प्रक्रिया के दौरान ध्यान भ्रुकृटि में सतरंगी बिंदु पर केन्द्रित करना है। इस प्रक्रिया को पूरा करने में मुश्किल से साठ सेकण्ड (एक मिनट) का समय लगेगा।

मेरे सद्गुरु परमात्मा

सचसँग

  1.  तूँ जो है सो मैं हूँ, जो मैं हूँ सो तूँ है।
  2. बस केवल एक तत्व तूँ ही तूँ है, मैं ही मैं हूँ।
  3. जब तूँ है तब मैं नहीं, जब मैं हूँ तब तूँ नहीं।
  4. मेरा सब कुछ तेरा है, तेरा सब कुछ मेरा है।
  5. मेरा सब कुछ तुझमें है, तेरा सब कुछ मुझमें है। यानि मेरी हस्ती केवल मात्र तुझसे यानि मुझसे है।
  6. तूँ मुझमें है और मैं तुझमें हूँ।
  7. तूँ और मैं एक है, एक होकर भी दो है। दो होकर भी एक है। यानि ‘121’ है। यहीं मेरी जिन्दगी का उद्देश्य है और मेरी जिन्दगी का उद्देश्यफल है।

सभी वस्तुओं, व्यक्तियों और विचारों को छोड़कर मैं तुझसे, तेरे विचार से और तेरे दिये नाम ‘सद्गुरु’ स्मरण से जुड़ा हुआ हूँ। तेरा और तेरे स्वरूप का ध्यान करके तेरे दिये नाम ‘सद्गुरू’ का स्मरण करता हूँ। तेरे दिये नाम ‘सद्गुरू’ का स्मरण करते करते तेरे ध्यान में चला जाता हूँ। तेरा ध्यान करते करते समाधि में चला जाता हूँ। फलस्वरूप तेरे द्धारा दिए गए अमृत का पान करता हूँ। यानि मैं एक अमृतधारी इन्सान हूँ। यही मेरी साधना, प्रेयर, पुरुषार्थ के साथ साथ स्मरण,का फल है यानि मेरा भाग्य है।

अपने इस भाग्य के फलस्वरूप मैं तेरे द्धारा दिए गए अमृत का पान कर रहा हूँ। तेरे द्धारा दिए गए अमृत का पान करते करते तुझ निराकार सद्गुरू परमात्मा से एकाकार हो रहा हूँ। तुझ निराकार सद्गुरू परमात्मा से एकाकार हो गया हूँ। मैं ही निराकार सद्गुरू परमात्मा हूँ। मैं ही इस सृष्टि का मालिक हूँ।

इस सृष्टि के सारे प्राणी मेरी ही सन्तान है। मैं ही सब प्राणिओं का माता, पिता, बन्धु, सखा, विद्द्या, द्रविणं, देव, सबजन, सबकुछ, आत्मा और परमात्मा हूँ। मैं ही निराकार सद्गुरू परमात्मा हूँ। मैं ही सृष्टि का मालिक हूँ। मेरा नाम सद्गुरू है। मैं मेरे ही नाम सद्गुरू का स्मरण कर रहा हूँ।

मैं मेरे ही नाम सद्गुरू का स्मरण करते करते स्वयं से एकाकार हो रहा हूँ। स्वयं से एकाकार हो गया हूँ। मैं स्वयं ही निराकार सद्गुरु परमात्मा हूँ। मैं स्वयं ही इस सृष्टि का मालिक हूँ।

नोट:

पहले एक बार मन ही मन ‘सद्गुरु’ बोलना है फिर सामान्य श्वास लेना है। फिर एक पल (सेकण्ड) रुकना है फिर एक बार मन ही मन ‘सद्गुरु’ बोलना है फिर सामान्य श्वास छोड़ना है। इस प्रक्रिया को ग्यारह बार दोहराते रहना है। इस प्रक्रिया के दौरान ध्यान भ्रुकृटि में रखना है। इस प्रक्रिया के दौरान ध्यान भ्रुकृटि में सतरंगी बिंदु पर केन्द्रित करना है। स्मरण से पहले ध्यान लगेगा फिर आप समाधि में पहुँच जाओगें।

‘‘निमित्त’

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